चमत्कार : सत्य या असत्य
>> Thursday, January 12, 2017
चमत्कार क्या है? बुद्धि जिसको समझ न पाए वही तो चमत्कार है। जो एक को नहीं समझ आता है वह दूसरे को समझ आ जाता है। चमत्कार वह हो सकता है जिसे कोई कर न सके और सिद्धि वो हो सकती है जिसे बाद में भी कोई कर सके। जो समझ न आए वही चमत्कार है जो समझ आ जाए तो वो फिर चमत्कार नहीं रहता है। चमत्कार की आवश्यकता किसे है? चमत्कार की आवश्यकता उसे है जो चुटकियों में सबसुख पा लेना चाहता है। जिसे दूसरा कोई कर न सके उसे ही चमत्कार कह सकते हैं।
साधना करके जब कोई सिद्धि कर लेता है और फिर दूसरों के उपयोग के लिए उसे प्रयोग में लाता है और उसका कार्य बन जाता है तो उसके लिए आश्चर्य होने के कारण चमत्कार हो जाता है।
जिस अनुपात में संयम होता है और उसके अनुरूप जिस अनुपात में साधना होती है तो उसी अनुपात में सिद्धि मिलती है। सच्ची सिद्धि आत्मज्ञान के बिना नहीं मिलती है।
चमत्कार को सभी नमस्कार करते हैं। चमत्कार उसके लिए होता है जिसके पास बुद्धि नहीं होती है या अल्प होती है। बुद्धिमान तो चमत्कार से दूर भागता है। चमत्कार तो हाथ की सफाई है, मूर्ख बनाने का तरीका है। मूर्ख कैसे बनाया जा रहा है, यह ज्ञात हो जाए तो व्यक्ति उसे चमत्कार समझेगा ही नहीं।
जो कहता है कि उसने चमत्कार किया तो कहने वाले में अंधश्रद्धा है और जिसमें यह अंधश्रद्धा है वह स्वयं को अपने आप मूर्ख बनाता है।
चमत्कार का जीवन में कोई स्थान नहीं है। चमत्कार करने की मनुष्य में शक्ति नहीं हो सकती है। भगवान् कृष्ण ने गीता में चमत्कार के विषय में कुछ नहीं कहा तो हमारी क्या औकात है। जो निठल्ले हैं और कोई काम नहीं है या अल्प बुद्धि हैं, वे ही बोलते रहते हैं, उसने चमत्कार किया।
सफाई से विज्ञान के कुछ प्रयोग द्वारा सामान्य जन को मूर्ख बनाकर अंधश्रद्धा उत्पन्न करना ही चमत्कार है। यदि सच में चमत्कार है तो चमत्कार करने वाला ऐसा चमत्कार क्यों नहीं करता जो देश की गरीबी दूर हो जाए। बिना बात सिक्के पर राख उत्पन्न कर देना या कुंकुम निकाल देना या जौ के दाने भून देना आदि व्यर्थ की हाथ की सफाई कैमिकल के द्वारा करके अंधविश्वास जमाने का उपक्रम मात्र है। चमत्कार के चक्कर में लालची ही फंसता है। साधू मिला उसने गहने दुगने करने का लालच दिया या नोट डबल करने का लालच दिया और लालची उसमें फंस गया और अपना सब कुछ गंवा बैठा। वह मूर्ख बनाया जा रहा था और लालच वश वह मूर्ख बन भी गया और फिर बाद में पछताता है। इस प्रकार के अनेक किस्से समाचार पत्रों में आए दिन छपते रहते हैं।
लालची ही चमत्कार में फंसता है जिसके पास बुद्धि है वह कभी नहीं फंसता है। वैसे भी जब लालच होता है तो बुद्धि अपने आप जड़ हो जाती है। जड़ बुद्धि आसानी से बहकावे में आ जाता है।
कोई धर्म ऐसा हो जो चमत्कार से कुकर्म के मार्ग से भयभीत करके सत्कार्यों में धकेलता है तो ऐसा धर्म सच में उपयोगी है। बच्चों को भी तो सुधारने के लिए डराया जाता है। उनके पीछे नहीं चलना चाहिए जो चमत्कार से नमस्कार करवाकर अपना अनुयायी बनाना चाहते हों। कुछ लोग दूसरों को अनुयायी बनाने के लिए कई लोगों की सहायता से शरारती हथकंडा करते हैं जिससे सब उसी ओर चल पड़ें। जैसे गणेश जी की मूर्ति ने दूध पिया या पूर्व योजनानुसार मूर्ति का उद्भव जमीन के नीचे दबाकर हाथ की सफाई से कर देना। यह सब व्यर्थ में मूर्ख बनाकर सिर्फ अपनी वाह-वाह या अनुयायी बनाने का एक हथकंडा मात्र है। यह तो मात्र मूर्खों के मन में श्रद्धा बिठाकर अपना अनुयायी बनाने के लिए है। सबको चुटकियों में चाहिए और सबकुछ चाहिए। कोई कह दे कि अमुक स्थान पर पेड़ से नोट गिर रहे हैं तो लोग तो लालची हैं, अपने आवश्यक कार्य छोड़कर वहां लेने पहुंच जाएंगे अब चाहे उन्हें नोट मिले या नहीं।
साधना करके जब कोई सिद्धि कर लेता है और फिर दूसरों के उपयोग के लिए उसे प्रयोग में लाता है और उसका कार्य बन जाता है तो उसके लिए आश्चर्य होने के कारण चमत्कार हो जाता है।
जिस अनुपात में संयम होता है और उसके अनुरूप जिस अनुपात में साधना होती है तो उसी अनुपात में सिद्धि मिलती है। सच्ची सिद्धि आत्मज्ञान के बिना नहीं मिलती है।
चमत्कार को सभी नमस्कार करते हैं। चमत्कार उसके लिए होता है जिसके पास बुद्धि नहीं होती है या अल्प होती है। बुद्धिमान तो चमत्कार से दूर भागता है। चमत्कार तो हाथ की सफाई है, मूर्ख बनाने का तरीका है। मूर्ख कैसे बनाया जा रहा है, यह ज्ञात हो जाए तो व्यक्ति उसे चमत्कार समझेगा ही नहीं।
जो कहता है कि उसने चमत्कार किया तो कहने वाले में अंधश्रद्धा है और जिसमें यह अंधश्रद्धा है वह स्वयं को अपने आप मूर्ख बनाता है।
चमत्कार का जीवन में कोई स्थान नहीं है। चमत्कार करने की मनुष्य में शक्ति नहीं हो सकती है। भगवान् कृष्ण ने गीता में चमत्कार के विषय में कुछ नहीं कहा तो हमारी क्या औकात है। जो निठल्ले हैं और कोई काम नहीं है या अल्प बुद्धि हैं, वे ही बोलते रहते हैं, उसने चमत्कार किया।
सफाई से विज्ञान के कुछ प्रयोग द्वारा सामान्य जन को मूर्ख बनाकर अंधश्रद्धा उत्पन्न करना ही चमत्कार है। यदि सच में चमत्कार है तो चमत्कार करने वाला ऐसा चमत्कार क्यों नहीं करता जो देश की गरीबी दूर हो जाए। बिना बात सिक्के पर राख उत्पन्न कर देना या कुंकुम निकाल देना या जौ के दाने भून देना आदि व्यर्थ की हाथ की सफाई कैमिकल के द्वारा करके अंधविश्वास जमाने का उपक्रम मात्र है। चमत्कार के चक्कर में लालची ही फंसता है। साधू मिला उसने गहने दुगने करने का लालच दिया या नोट डबल करने का लालच दिया और लालची उसमें फंस गया और अपना सब कुछ गंवा बैठा। वह मूर्ख बनाया जा रहा था और लालच वश वह मूर्ख बन भी गया और फिर बाद में पछताता है। इस प्रकार के अनेक किस्से समाचार पत्रों में आए दिन छपते रहते हैं।
लालची ही चमत्कार में फंसता है जिसके पास बुद्धि है वह कभी नहीं फंसता है। वैसे भी जब लालच होता है तो बुद्धि अपने आप जड़ हो जाती है। जड़ बुद्धि आसानी से बहकावे में आ जाता है।
कोई धर्म ऐसा हो जो चमत्कार से कुकर्म के मार्ग से भयभीत करके सत्कार्यों में धकेलता है तो ऐसा धर्म सच में उपयोगी है। बच्चों को भी तो सुधारने के लिए डराया जाता है। उनके पीछे नहीं चलना चाहिए जो चमत्कार से नमस्कार करवाकर अपना अनुयायी बनाना चाहते हों। कुछ लोग दूसरों को अनुयायी बनाने के लिए कई लोगों की सहायता से शरारती हथकंडा करते हैं जिससे सब उसी ओर चल पड़ें। जैसे गणेश जी की मूर्ति ने दूध पिया या पूर्व योजनानुसार मूर्ति का उद्भव जमीन के नीचे दबाकर हाथ की सफाई से कर देना। यह सब व्यर्थ में मूर्ख बनाकर सिर्फ अपनी वाह-वाह या अनुयायी बनाने का एक हथकंडा मात्र है। यह तो मात्र मूर्खों के मन में श्रद्धा बिठाकर अपना अनुयायी बनाने के लिए है। सबको चुटकियों में चाहिए और सबकुछ चाहिए। कोई कह दे कि अमुक स्थान पर पेड़ से नोट गिर रहे हैं तो लोग तो लालची हैं, अपने आवश्यक कार्य छोड़कर वहां लेने पहुंच जाएंगे अब चाहे उन्हें नोट मिले या नहीं।
0 comments:
Post a Comment